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श्री राम चंद्र जी की आरती
श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन,हरण भवभय दारुणम्।
नव कंज लोचन, कंज मुख कर कंज पद कंजारुणम्॥
॥श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन ॥
कन्दर्प अगणित अमित छवि, नव नील नीरद सुन्दरम्।
पट पीत मानहुं तड़ित रूचि-शुचि नौमि जनक सुतावरम्॥
॥श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन ॥
भजु दीनबंधु दिनेश दानव दैत्य वंश निकन्दनम्।
रघुनन्द आनन्द कन्द कौशल चन्द्र दशरथ नन्द्नम्॥
॥श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन ॥
सिर मुकुट कुंडल तिलक चारू उदारु अंग विभूषणम्।
आजानुभुज शर चाप-धर, संग्राम जित खरदूषणम्॥
॥श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन ॥
इति वदति तुलसीदास, शंकर शेष मुनि मन रंजनम्।
मम ह्रदय कंज निवास कुरु, कामादि खल दल गंजनम्॥
॥श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन ॥
मन जाहि राचेऊ मिलहि सो वर सहज सुन्दर सांवरो।
करुणा निधान सुजान शील सनेह जानत रावरो॥
॥श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन ॥
एही भांती गौरी असीस सुनी सिय सहित हिय हरषी अली।
तुलसी भवानी पूजि पूनी पूनी मुदित मन मंदिर चली।।
॥श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन ॥
जानि गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि।
मंजुल मंगल मूल वाम अंग फरकन लगे।।
॥श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन ॥
॥ इति श्री राम आरती॥